इंसान जितना कृतज्ञ बनेगा इतना वह ज्यादा ईश्वर से कृपा पाएगा यह हम नहीं कहते, यह संसार के अधिभौतिक नियम कहते हैं. जब भी मौका मिले तब अपने दोनों हाथो को 🙏 आशमान की और जोड़े और परम शून्य पर टिके आकाश तत्व और अनंत अस्तित्व को धन्यवाद दे.
यहाँ सबकुछ परिवर्तनशील हैं.हर समय परिवर्तन हो रहा हैं.पंच महाभूतों हर समय बदल रहे हैं. आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल, जल से पृथ्वी, यह बदलाव इतने तीव्र हैं की अजतक कोई मशीन इसे पकड़ नहीं पायी. तो फिर प्रश्न यह हैं की यह बदलाव किसने देखे? उसका उत्तर हैं, यह पंच महाभूतों के बदलाव आत्मज्ञानी महापुरुषोंने अपने ही शरीर देखे, यह उन्हों ने अपने भीतर की चेतना की दृष्टी से देखा, वहां तक पहोचने के लिए किसी ने घोर तपस्या की,किसी ने गुरु दीक्षित मंत्र जाप किये,किसी ने भक्ति की,किसी ने कई सालो तक दिन मे पांच बार नियमित नमाज़ पढ़ी, किसी ने प्रार्थना की, और भी बहोत रास्ते हैं जो इंसान को परम सत्य तक पंहुचा देते हैं, शर्त हैं की कोई भी एक रास्ते को पकड़ लेना है, और पूरी ईमानदारी से कड़ी से कड़ी महेनत करनी हैं.बड़ी कठिन से कठिन साधना से भी फल प्राप्त नहीं होता हैं तो भटकना नहीं हैं. रास्ता बदलना नहीं हैं वरना साधक भटक जायेगा वह कही नहीं पहोचेगा, इसीलिए ऐसी साधना मे गुरु की बड़ी महत्वपूर्ण अवश्यकता है जो आपको कभी भटकने नहीं देगा, और लक्ष्य को पाने में अंत तक साथ दे, और यह कोई आसान काम भी नहीं हैं, यह सबसे बड़ी उपलब्धी हैं और जीतनी बड़ी उपलब्ध इतना बड़ा श्रम होगा, अथाक परिश्रम होगा, सबकुछ छोड़ना होगा, इसलिए सन्यासी लोग घर परिवार छोड़ देते हैं, लेकिन आपको घर संसार छोड़ने की जरुरत नहीं हैं, आप संसार में रहकर अपने गृहस्थ जीवन में रहकर अपनी पारिवारिक जिम्मेदारी निभाते हुए
परम सत्य तक पहोचो सबसे बड़ी वीरता हैं, इतिहास के बड़े से बड़े आत्माज्ञानी महापुरुषों ने घर संसार का त्याग किया था वह समय और मानव समाज सभ्यता का ढाँचा ऐसा था, आज के ज़माने में ऐसा करने से मनुष्य जाती पर बोज बढेगा, कोई आत्मज्ञान के लिए साधना करें और कोई और खिलाये यह तो व्याजबी नहीं हैं, आज हमें संसार में रहकर अपने घर के कोने में ऑफिस पर दुकान पर बाजार में कर्मयोगी रहते हुए परम सत्य की साधना चालू रखनी चाहिए. एक ना एक दिन वह सच्चा ईमानदार और कड़ी महेनत करनेवाला साधक लक्ष्य पर पहोच ही जाता हैं. मै यह नहीं कह सकता की तुम इस मार्ग को अपनाओ और इस मार्ग को मत अपनाओ.इस पृथ्वी पर बहोत ऐसे रास्ते हैं जहाँ से आप यात्रा कर शकते हैं. आपके शरीर मन और भीतर की चेतना को जो ठीक लगे वह रास्ता अपनाओ. इसे किसी विशेष धर्म और संप्रदाय से मत तुलना करें. रास्ता रास्ता होता वह किसी धर्म और संप्रदाय का नहीं होता. आज की व्यवस्था हमें धर्म और संप्रदाय में बाटती हैं. यह बात अलग हैं इसके पीछे बहोत ही राजनैतिक और सामाजिक व्यवस्था के मुलभुत कारण होते हैं. हमें एक बात याद रखनी चाहिए जो रास्ता मन सरल और निर्मल बनाये और साथ ही भीतर की चेतना का विकास करें वही सच्चा रास्ता हैं.आज के लिए उतना ही और दूसरी बाते गुरूजी के अगले प्रवचन के बाद होंगी. आप जिज्ञासु मित्रो ने मेरे गुरु द्वारा कही गई बातो को इतने ध्यान और एकाग्रता से सुनी इसके लिए आपका बहोत बहोत धन्यवाद. सर्व शक्तिशाली महासत्ता परम शून्य आप सभी की मनोकामना पूर्ण करें. एक बार फिर अपने दो हाथ 🙏आसमान की और आकाश तत्व को धन्यवाद दें. तीन बार मन ही मन में कृतज्ञ होकर पूरी कृतज्ञता भाव से धन्यवाद करेंगे. धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद.....